Wednesday 15 May 2013

द्वितीयाध्याये चतुर्थः पादः 2-4

पाणिनि महर्षि विरचिता अष्टाध्यायी 
द्वितीयाध्याये चतुर्थः पादः
द्विगुरेकवचनम्  ॥ २,४.१ ॥
द्वन्द्वश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम्  ॥ २,४.२ ॥
अनुवादे चरणानाम्  ॥ २,४.३ ॥
अध्वर्युक्रतुरनपुंसकम्  ॥ २,४.४ ॥
अध्ययनतोऽविप्रकृष्टाख्यानाम्  ॥ २,४.५ ॥
जातिरप्राणिनाम्  ॥ २,४.६ ॥
विशिष्टलिङ्गो नदी देशोऽग्रामाः  ॥ २,४.७ ॥
क्षुद्रजन्तवः  ॥ २,४.८ ॥
येषां च विरोधः शाश्वतिकः  ॥ २,४.९ ॥
शूद्राणामनिरवसितानाम्  ॥ २,४.१० ॥
गवाश्वप्रभृतीनि च  ॥ २,४.११ ॥
विभाषा वृक्षमृगतृणधान्यव्यञ्जनपशुशकुन्यश्ववडवपूर्वापराधरोत्तराणाम्  ॥ २,४.१२ ॥
विप्रतिषिद्धं चानधिकरणवाचि  ॥ २,४.१३ ॥
न दधिपयादीनि  ॥ २,४.१४ ॥
अधिकरनैतावत्त्वे च  ॥ २,४.१५ ॥
विभाषा समीपे  ॥ २,४.१६ ॥
स नपुंसकम्  ॥ २,४.१७ ॥
अव्ययीभावश्च  ॥ २,४.१८ ॥
तत्पुरुषोऽनञ्कर्मधारयः  ॥ २,४.१९ ॥
सञ्ज्ञायां कन्तोशीनरेषु  ॥ २,४.२० ॥
उपज्ञोपक्रमं तदाद्याचिख्यासायाम्  ॥ २,४.२१ ॥
छाया बाहुल्ये  ॥ २,४.२२ ॥
सभा राजाऽमनुस्यपूर्वा  ॥ २,४.२३ ॥
अशाला च  ॥ २,४.२४ ॥
विभाषा सेनासुराच्छायाशालानिशानाम्  ॥ २,४.२५ ॥
परवल्लिङ्गं द्वन्द्वतत्पुरुषयोः  ॥ २,४.२६ ॥
पूर्ववदश्ववडवौ  ॥ २,४.२७ ॥
हेमन्तशिशिरावहोरात्रे च छन्दसि  ॥ २,४.२८ ॥
रात्राह्नाहाः पुंसि  ॥ २,४.२९ ॥
अपथं नपुंसकम्  ॥ २,४.३० ॥
अर्धर्चाः पुंसि च  ॥ २,४.३१ ॥
इदमोऽन्वादेशेऽशनुदात्तस्तृतीयादौ  ॥ २,४.३२ ॥
एतदस्त्रतसोस्त्रतसौ चानुदातौ  ॥ २,४.३३ ॥
द्वितीयाटौस्स्वेनः  ॥ २,४.३४ ॥
आर्धधातुके  ॥ २,४.३५ ॥
अदो जग्धिर्ल्यप्ति किति  ॥ २,४.३६ ॥
लुङ्सनोर्घसॢ  ॥ २,४.३७ ॥
घञपोश्च  ॥ २,४.३८ ॥
बहुलं छन्दसि  ॥ २,४.३९ ॥
लिट्यन्तरस्याम्  ॥ २,४.४० ॥
वेञो वयिः  ॥ २,४.४१ ॥
हनो वध लिङि  ॥ २,४.४२ ॥
लुङि च  ॥ २,४.४३ ॥
आत्मनेपदेष्वन्यतरस्याम्  ॥ २,४.४४ ॥
इणो गा लुङि  ॥ २,४.४५ ॥
णौ गमिरबोधने  ॥ २,४.४६ ॥
सनि च  ॥ २,४.४७ ॥
इङश्च  ॥ २,४.४८ ॥
गाङ्लिटि  ॥ २,४.४९ ॥
विभाषा लुङॢङोः  ॥ २,४.५० ॥
णौ च संश्चङोः  ॥ २,४.५१ ॥
अस्तेर्भूः  ॥ २,४.५२ ॥
ब्रुवो बचिः  ॥ २,४.५३ ॥
चक्षिङः ख्याञ् ॥ २,४.५४ ॥
वा लिटि  ॥ २,४.५५ ॥
अजेर्व्यघञपोः  ॥ २,४.५६ ॥
वा यौ  ॥ २,४.५७ ॥
ण्यक्षत्रियार्षञितो यूनि लुगणिञोः  ॥ २,४.५८ ॥
पैलादिब्यश्च  ॥ २,४.५९ ॥
इञः प्राचाम्  ॥ २,४.६० ॥
न तौल्वलिभ्यः  ॥ २,४.६१ ॥
तद्राजस्य बहुषु तेन+एवास्त्रियाम्  ॥ २,४.६२ ॥
यस्कादिभ्यो गोत्रे  ॥ २,४.६३ ॥
यञञोश्च  ॥ २,४.६४ ॥
अत्रिभृगुकुत्सवसिष्ठगोतमाङ्गिरोभ्यश्च  ॥ २,४.६५ ॥
बह्वचिञः प्राच्यभ्रतेषु  ॥ २,४.६६ ॥
न गोपवनादिभ्यः  ॥ २,४.६७ ॥
तिककितवादिभ्यो द्वन्द्वे  ॥ २,४.६८ ॥
उपकादिभ्योऽन्यतरस्यामद्वन्द्वे  ॥ २,४.६९ ॥
आगस्त्यकौण्डिन्ययोरगस्तिकुण्डिनच् ॥ २,४.७० ॥
सुपो धातुप्रातिपदिकयोः  ॥ २,४.७१ ॥
अदिप्रभृतिभ्यः शपः  ॥ २,४.७२ ॥
बहुलं छन्दसि  ॥ २,४.७३ ॥
यङोऽचि च  ॥ २,४.७४ ॥
जुहोत्यादिभ्यः श्लुः  ॥ २,४.७५ ॥
बहुलं छन्दसि  ॥ २,४.७६ ॥
गातिस्थाघुपाभूभ्यः सिचः परस्मैपदेषु  ॥ २,४.७७ ॥
विभाषा घ्राधेट्शाच्छासः  ॥ २,४.७८ ॥
तनादिभ्यस्तथासोः  ॥ २,४.७९ ॥
मन्त्रे घसह्वरनशवृदहाद्वृच्कृगमिजनिभ्यो लेः  ॥ २,४.८० ॥
आमः  ॥ २,४.८१ ॥
अव्ययादाप्सुपः  ॥ २,४.८२ ॥
नाव्ययीभावादतोऽम्‌ त्वपञ्चम्याः  ॥ २,४.८३ ॥
तृतीयासप्तम्योर्बहुलम्  ॥ २,४.८४ ॥
लुटः प्रथमस्य डारौरसः  ॥ २,४.८५ ॥
इति पाणिनि महर्षि विरचिष्टाध्यायी मध्ये  
द्वितीयाध्याये चतुर्थः पादः 


Tuesday 14 May 2013

द्वितीयाध्याये तृतीयः पादः 2-3

पाणिनि महर्षि विरचिता अष्टाध्यायी 
द्वितीयाध्याये  तृतीयः पादः
अनभिहिते  ॥ २,३.१ ॥
कर्मणि द्वितीया  ॥ २,३.२ ॥
तृतीया च होश्छन्दसि  ॥ २,३.३ ॥
अन्तराऽन्तरेण युक्ते  ॥ २,३.४ ॥
कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे  ॥ २,३.५ ॥
अपवर्गे तृतीया  ॥ २,३.६ ॥
सप्तमीपञ्चम्यौ कारकमध्ये  ॥ २,३.७ ॥
कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया  ॥ २,३.८ ॥
यस्मादधिकं यस्य च+ईश्वरवचनं तत्र सप्तमी  ॥ २,३.९ ॥
पञ्चम्यपाङ्परिभिः  ॥ २,३.१० ॥
प्रतिनिधिप्रतिदाने च यस्मात् ॥ २,३.११ ॥
गत्यर्थकर्मणि द्वितीयाचतुर्थ्यौ चेष्टायामनध्वनि  ॥ २,३.१२ ॥
चतुर्थी सम्प्रदाने  ॥ २,३.१३ ॥
क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः  ॥ २,३.१४ ॥
तुमर्थाच्च भाववचनात् ॥ २,३.१५ ॥
नमःस्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च  ॥ २,३.१६ ॥
मन्यकर्मण्यनादरे विभाषाऽप्राणिषु  ॥ २,३.१७ ॥
कर्तृकरणयोस्तृतीया  ॥ २,३.१८ ॥
सहयुक्तेऽप्रधाने  ॥ २,३.१९ ॥
येनाङ्गविकारः  ॥ २,३.२० ॥
इत्थम्भूतलक्षणे  ॥ २,३.२१ ॥
सञ्ज्ञोऽन्यतरस्यां कर्मणि  ॥ २,३.२२ ॥
हेतौ  ॥ २,३.२३ ॥
अकर्तर्यृणे पञ्चमी  ॥ २,३.२४ ॥
विभाषा गुणेऽस्त्रीयाम्  ॥ २,३.२५ ॥
षष्ठी हेतुप्रयोगे  ॥ २,३.२६ ॥
सर्वनाम्नस्तृतीया च  ॥ २,३.२७ ॥
अपादाने पञ्चमी  ॥ २,३.२८ ॥
अन्यारादितरर्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते  ॥ २,३.२९ ॥
षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन  ॥ २,३.३० ॥
एनपा द्वितीया  ॥ २,३.३१ ॥
पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम्  ॥ २,३.३२ ॥
करेण च स्तोकाल्पकृच्छ्रकतिपयस्यासत्त्ववचनस्य  ॥ २,३.३३ ॥
दूरान्तिकार्थैः षष्ठ्यन्यतरस्याम्  ॥ २,३.३४ ॥
दूरान्तिकार्थेभ्यो द्वितीया च  ॥ २,३.३५ ॥
सप्तम्यधिकरने च  ॥ २,३.३६ ॥
यस्य च भावेन भावलक्षणम्  ॥ २,३.३७ ॥
षष्ठी चानादरे  ॥ २,३.३८ ॥
स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसुतैश्च  ॥ २,३.३९ ॥
आयुक्तकुशलाभ्यां च आसेवायाम्  ॥ २,३.४० ॥
यतश्च निर्धारनम्  ॥ २,३.४१ ॥
पञ्चमी विभक्ते  ॥ २,३.४२ ॥
साधुनिपुणाभ्यामर्चायां सप्तम्यप्रतेः  ॥ २,३.४३ ॥
प्रसितोत्सुकाभ्यां तृतीया च  ॥ २,३.४४ ॥
नक्षत्रे च लुपि  ॥ २,३.४५ ॥
प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा  ॥ २,३.४६ ॥
सम्बोधने च  ॥ २,३.४७ ॥
सा+आमन्त्रितम्  ॥ २,३.४८ ॥
एकवचनं सम्बुद्धिः  ॥ २,३.४९ ॥
षष्ठी शेषे  ॥ २,३.५० ॥
ज्ञोऽविदर्थस्य करणे  ॥ २,३.५१ ॥
अधीगर्थदयेशां कर्मणि  ॥ २,३.५२ ॥
कृञः प्रतियत्ने  ॥ २,३.५३ ॥
रुजार्थानां भाववचनानामज्वरेः  ॥ २,३.५४ ॥
आशिषि नाथः  ॥ २,३.५५ ॥
जासिनिप्रहणनाटक्राथपिषां हिंसायाम्  ॥ २,३.५६ ॥
व्यवहृपणोः समर्थयोः  ॥ २,३.५७ ॥
दिवस्तदर्थस्य  ॥ २,३.५८ ॥
विभाषोपसर्गे  ॥ २,३.५९ ॥
द्वितीया ब्राह्मणे  ॥ २,३.६० ॥
प्रेष्यब्रुवोर्हविषो देवतासम्प्रदाने  ॥ २,३.६१ ॥
चतुर्थ्यर्थे बहुलं छन्दसि  ॥ २,३.६२ ॥
यजेश्च करणे  ॥ २,३.६३ ॥
कृत्वोऽर्थप्रयोगे कालेऽधिकरणे  ॥ २,३.६४ ॥
कर्तृकर्मणोः कृति  ॥ २,३.६५ ॥
उभयप्राप्तौ कर्मणि  ॥ २,३.६६ ॥
क्तस्य च वर्तमाने  ॥ २,३.६७ ॥
अधिकरणवाचिनश्च  ॥ २,३.६८ ॥
न लोउकाव्ययनिष्ठाखलर्थतृनाम्  ॥ २,३.६९ ॥
अकेनोर्भविष्यदाधमर्ण्ययोः  ॥ २,३.७० ॥
कृत्यानां कर्तरि वा  ॥ २,३.७१ ॥
तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयाऽन्यतरस्याम्  ॥ २,३.७२ ॥
चतुर्थी च आशिष्यायुष्यमद्रभद्रकुशलसुखार्थहितैः  ॥ २,३.७३ ॥
 
इति पाणिनि महर्षि विरचिष्टाध्यायी मध्ये
द्वितीयाध्याये  तृतीयः पादः
 

Monday 13 May 2013

द्वितीयाध्याये द्वितीयः पादः 2-2

पाणिनि महर्षि विरचिता अष्टाध्यायी 
द्वितीयाध्याये द्वितीयः पादः
पूर्वापराधरोत्तरमेकदेशिनैकाधिकरणे  ॥ २,२.१ ॥
अर्धं नपुंसकम्  ॥ २,२.२ ॥
द्वितियतृतीयचतुर्थतुर्याण्यन्य्तरस्याम्  ॥ २,२.३ ॥
प्राप्तापन्ने च द्वितीयया  ॥ २,२.४ ॥
कालाः परिमाणिना  ॥ २,२.५ ॥
नञ् ॥ २,२.६ ॥
ईषदकृता  ॥ २,२.७ ॥
षष्ठी  ॥ २,२.८ ॥
याजकादिभिश्च  ॥ २,२.९ ॥
न निर्धारणे  ॥ २,२.१० ॥
पूरणगुणसुहितार्थसदव्ययतव्यसमानाधिकरनेन  ॥ २,२.११ ॥
क्तेन च पूजायाम्  ॥ २,२.१२ ॥
अधिकरणवाचिना च  ॥ २,२.१३ ॥
कर्मणि च  ॥ २,२.१४ ॥
तृजकाभ्यां कर्तरि  ॥ २,२.१५ ॥
कर्तरि च  ॥ २,२.१६ ॥
नित्यं क्रीडाजीविकयोः  ॥ २,२.१७ ॥
कुगतिप्रादयः  ॥ २,२.१८ ॥
उपपदमतिङ् ॥ २,२.१९ ॥
अमैवाव्ययेन  ॥ २,२.२० ॥
तृतीयाप्रभृतीन्यतरस्यम्  ॥ २,२.२१ ॥
क्त्वा च  ॥ २,२.२२ ॥
शेषो बहुव्रीहिः  ॥ २,२.२३ ॥
अनेकमन्यपदार्थे  ॥ २,२.२४ ॥
सङ्ख्ययाऽव्ययासन्नादूराधिकसङ्ख्याः सङ्ख्येये  ॥ २,२.२५ ॥
दिङ्नामान्यन्तराले  ॥ २,२.२६ ॥
तत्र तेन+इदमिति सरूपे  ॥ २,२.२७ ॥
तेन सह+इति तुल्ययोगे  ॥ २,२.२८ ॥
चार्थे द्वन्द्वः  ॥ २,२.२९ ॥
उपसर्जनं पूर्वम्  ॥ २,२.३० ॥
राजदन्तादिषु परम्  ॥ २,२.३१ ॥
द्वन्द्वे घि  ॥ २,२.३२ ॥
अजाद्यदन्तम्  ॥ २,२.३३ ॥
अल्पाच्तरम्  ॥ २,२.३४ ॥
सप्तमीविशेषने बहुव्रीहौ  ॥ २,२.३५ ॥
निष्ठा  ॥ २,२.३६ ॥
वा+आहिताग्न्यादिषु  ॥ २,२.३७ ॥
कडाराः कर्मधारये  ॥ २,२.३८ ॥
 
इति
पाणिनि महर्षि विरचिताष्टाध्यायी 
द्वितीयाध्याये द्वितीयः पादः

Sunday 12 May 2013

द्वितीयाध्याये प्रथमः पादः 2-1

पाणिनि महर्षि विरचिता अष्टाध्यायी 
द्वितीयाध्याये प्रथमः पादः


समर्थः पदविधिः  ॥ २,१.१ ॥
सुबामन्त्रिते पराङ्गवत्स्वरे  ॥ २,१.२ ॥
प्राक्कडारात्समासः  ॥ २,१.३ ॥
सह सुपा  ॥ २,१.४ ॥
अव्ययीभवः  ॥ २,१.५ ॥
अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यृद्ध्यर्थाभावात्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथानुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्यान्तव्चनेषु  ॥ २,१.६ ॥
यथाऽसादृश्ये  ॥ २,१.७ ॥
यावदवधारणे  ॥ २,१.८ ॥
सुप्प्रैत्ना मात्रार्थे  ॥ २,१.९ ॥
अक्षशलाकासङ्ख्याः परिणा  ॥ २,१.१० ॥
विभाषा  ॥ २,१.११ ॥
अपपरिबहिरञ्चवः पञ्चम्या  ॥ २,१.१२ ॥
आङ्मर्यादाभिविध्योः  ॥ २,१.१३ ॥
लक्षणेनाभिप्रती आभिमुख्ये  ॥ २,१.१४ ॥
अनुर्यत्समया  ॥ २,१.१५ ॥
यस्य च आयामः  ॥ २,१.१६ ॥
तिष्ठद्गुप्रभृतीनि च  ॥ २,१.१७ ॥
पारे मध्ये षष्ठ्या वा  ॥ २,१.१८ ॥
सङ्ख्या वंश्येन  ॥ २,१.१९ ॥
नदीभिश्च  ॥ २,१.२० ॥
अन्यपदर्थे च सञ्ज्ञायाम्  ॥ २,१.२१ ॥
तत्पुरुषः  ॥ २,१.२२ ॥
द्विगुश्च  ॥ २,१.२३ ॥
द्विदीया श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापनैः  ॥ २,१.२४ ॥
स्वयं क्तेन  ॥ २,१.२५ ॥
खट्वा क्षेपे  ॥ २,१.२६ ॥
सामि  ॥ २,१.२७ ॥
कालाः  ॥ २,१.२८ ॥
अत्यन्तसंयोगे च  ॥ २,१.२९ ॥
तृतीया तत्कृतार्थेन गुणवचनेन  ॥ २,१.३० ॥
पूर्वसदृशसमोनार्थकलहनिपुणमिश्रश्लक्ष्णैः  ॥ २,१.३१ ॥
कर्तृकर्णे दृता बहुलम्  ॥ २,१.३२ ॥
कृत्यैरधिकार्थवचने  ॥ २,१.३३ ॥
अन्नेन व्यञ्जनम्  ॥ २,१.३४ ॥
भक्ष्येण मिश्रीकरनम्  ॥ २,१.३५ ॥
चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः  ॥ २,१.३६ ॥
पञ्चमी भयेन  ॥ २,१.३७ ॥
अपेतापोढमुक्तपतितापत्रस्तैरल्पशः  ॥ २,१.३८ ॥
स्तोकान्तिकदूरार्थकृच्छ्राणि क्तेन  ॥ २,१.३९ ॥
सप्तमी शौण्डैः  ॥ २,१.४० ॥
सिद्धशुष्कपक्वबन्धैश्च  ॥ २,१.४१ ॥
ध्वाङ्क्षेन क्षेपे  ॥ २,१.४२ ॥
क्र्त्यैरृणे  ॥ २,१.४३ ॥
सञ्ज्ञायाम्  ॥ २,१.४४ ॥
क्तेनाहोरात्रावयवाः  ॥ २,१.४५ ॥
तत्र  ॥ २,१.४६ ॥
क्षेपे  ॥ २,१.४७ ॥
पात्रेसमितादयश्च  ॥ २,१.४८ ॥
पूर्वकालैकसर्वजरत्पुराणानवकेवलाः समानाधिकरणेन  ॥ २,१.४९ ॥
दिक्सङ्ख्ये सञ्ज्ञायाम्  ॥ २,१.५० ॥
तद्धितर्थोत्तरपदसमाहारे च  ॥ २,१.५१ ॥
सङ्ख्यापूर्वो द्विगुः  ॥ २,१.५२ ॥
कुत्सितानि कुत्सनैः  ॥ २,१.५३ ॥
पापाणके कुत्सितैः  ॥ २,१.५४ ॥
उपमानानि सामान्यवचनैः  ॥ २,१.५५ ॥
उपमितं व्याघ्रादिभिः सामान्याप्रयोगे  ॥ २,१.५६ ॥
विशेसनं विशेष्येण बहुलम्  ॥ २,१.५७ ॥
पूर्वापरप्रथमचरमजघन्यसमानमध्यमध्यमवीराश्च  ॥ २,१.५८ ॥
श्रेण्यादयः कृतादिभिः  ॥ २,१.५९ ॥
क्तेन नञ्विशिष्टेनानञ् ॥ २,१.६० ॥
सन्महत्परमोत्तमोत्कृष्टाः पूज्यमानैः  ॥ २,१.६१ ॥
वृन्दरकनागकुञ्जरैः पूज्यमानम्  ॥ २,१.६२ ॥
कतरकतमौ जातिपरिप्रश्ने  ॥ २,१.६३ ॥
किं क्षेपे  ॥ २,१.६४ ॥
पोटायुवतिस्तोककतिपयगृष्टिधेनुवशावेहद्बष्कयणीप्रवक्तृश्रोत्रियाध्यापकधूर्तैर्जातिः  ॥ २,१.६५ ॥
प्रशंसावचनैश्च  ॥ २,१.६६ ॥
युवा खलतिपालितवलिनजरतीभिः  ॥ २,१.६७ ॥
कृत्यतुल्याख्या अजात्या  ॥ २,१.६८ ॥
वर्णो वर्णेन  ॥ २,१.६९ ॥
कुमारः श्रमणादिभिः  ॥ २,१.७० ॥
चतुष्पादो गर्भिण्या  ॥ २,१.७१ ॥
मयूरव्यंसकादयश्च  ॥ २,१.७२ ॥

इति पाणिनि महर्षि विरचिष्टाध्यायी मध्ये
द्वितीयाध्याये प्रथमः पादः