पाणिनि महर्षि विरचिता अष्टाध्यायी
द्वितीयाध्याये द्वितीयः पादः
पूर्वापराधरोत्तरमेकदेशिनैकाधिकरणे ॥ २,२.१ ॥
अर्धं नपुंसकम् ॥ २,२.२ ॥
द्वितियतृतीयचतुर्थतुर्याण्यन्य्तरस्याम् ॥ २,२.३ ॥
प्राप्तापन्ने च द्वितीयया ॥ २,२.४ ॥
कालाः परिमाणिना ॥ २,२.५ ॥
नञ् ॥ २,२.६ ॥
ईषदकृता ॥ २,२.७ ॥
षष्ठी ॥ २,२.८ ॥
याजकादिभिश्च ॥ २,२.९ ॥
न निर्धारणे ॥ २,२.१० ॥
पूरणगुणसुहितार्थसदव्ययतव्यसमानाधिकरनेन ॥ २,२.११ ॥
क्तेन च पूजायाम् ॥ २,२.१२ ॥
अधिकरणवाचिना च ॥ २,२.१३ ॥
कर्मणि च ॥ २,२.१४ ॥
तृजकाभ्यां कर्तरि ॥ २,२.१५ ॥
कर्तरि च ॥ २,२.१६ ॥
नित्यं क्रीडाजीविकयोः ॥ २,२.१७ ॥
कुगतिप्रादयः ॥ २,२.१८ ॥
उपपदमतिङ् ॥ २,२.१९ ॥
अमैवाव्ययेन ॥ २,२.२० ॥
तृतीयाप्रभृतीन्यतरस्यम् ॥ २,२.२१ ॥
क्त्वा च ॥ २,२.२२ ॥
शेषो बहुव्रीहिः ॥ २,२.२३ ॥
अनेकमन्यपदार्थे ॥ २,२.२४ ॥
सङ्ख्ययाऽव्ययासन्नादूराधिकसङ्ख्याः सङ्ख्येये ॥ २,२.२५ ॥
दिङ्नामान्यन्तराले ॥ २,२.२६ ॥
तत्र तेन+इदमिति सरूपे ॥ २,२.२७ ॥
तेन सह+इति तुल्ययोगे ॥ २,२.२८ ॥
चार्थे द्वन्द्वः ॥ २,२.२९ ॥
उपसर्जनं पूर्वम् ॥ २,२.३० ॥
राजदन्तादिषु परम् ॥ २,२.३१ ॥
द्वन्द्वे घि ॥ २,२.३२ ॥
अजाद्यदन्तम् ॥ २,२.३३ ॥
अल्पाच्तरम् ॥ २,२.३४ ॥
सप्तमीविशेषने बहुव्रीहौ ॥ २,२.३५ ॥
निष्ठा ॥ २,२.३६ ॥
वा+आहिताग्न्यादिषु ॥ २,२.३७ ॥
कडाराः कर्मधारये ॥ २,२.३८ ॥
अर्धं नपुंसकम् ॥ २,२.२ ॥
द्वितियतृतीयचतुर्थतुर्याण्यन्य्तरस्याम् ॥ २,२.३ ॥
प्राप्तापन्ने च द्वितीयया ॥ २,२.४ ॥
कालाः परिमाणिना ॥ २,२.५ ॥
नञ् ॥ २,२.६ ॥
ईषदकृता ॥ २,२.७ ॥
षष्ठी ॥ २,२.८ ॥
याजकादिभिश्च ॥ २,२.९ ॥
न निर्धारणे ॥ २,२.१० ॥
पूरणगुणसुहितार्थसदव्ययतव्यसमानाधिकरनेन ॥ २,२.११ ॥
क्तेन च पूजायाम् ॥ २,२.१२ ॥
अधिकरणवाचिना च ॥ २,२.१३ ॥
कर्मणि च ॥ २,२.१४ ॥
तृजकाभ्यां कर्तरि ॥ २,२.१५ ॥
कर्तरि च ॥ २,२.१६ ॥
नित्यं क्रीडाजीविकयोः ॥ २,२.१७ ॥
कुगतिप्रादयः ॥ २,२.१८ ॥
उपपदमतिङ् ॥ २,२.१९ ॥
अमैवाव्ययेन ॥ २,२.२० ॥
तृतीयाप्रभृतीन्यतरस्यम् ॥ २,२.२१ ॥
क्त्वा च ॥ २,२.२२ ॥
शेषो बहुव्रीहिः ॥ २,२.२३ ॥
अनेकमन्यपदार्थे ॥ २,२.२४ ॥
सङ्ख्ययाऽव्ययासन्नादूराधिकसङ्ख्याः सङ्ख्येये ॥ २,२.२५ ॥
दिङ्नामान्यन्तराले ॥ २,२.२६ ॥
तत्र तेन+इदमिति सरूपे ॥ २,२.२७ ॥
तेन सह+इति तुल्ययोगे ॥ २,२.२८ ॥
चार्थे द्वन्द्वः ॥ २,२.२९ ॥
उपसर्जनं पूर्वम् ॥ २,२.३० ॥
राजदन्तादिषु परम् ॥ २,२.३१ ॥
द्वन्द्वे घि ॥ २,२.३२ ॥
अजाद्यदन्तम् ॥ २,२.३३ ॥
अल्पाच्तरम् ॥ २,२.३४ ॥
सप्तमीविशेषने बहुव्रीहौ ॥ २,२.३५ ॥
निष्ठा ॥ २,२.३६ ॥
वा+आहिताग्न्यादिषु ॥ २,२.३७ ॥
कडाराः कर्मधारये ॥ २,२.३८ ॥
इति
पाणिनि महर्षि विरचिताष्टाध्यायी
द्वितीयाध्याये द्वितीयः पादः
No comments:
Post a Comment